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Wednesday, April 21, 2010

सफ़र में मुश्किलें ...

सफ़र में मुश्किलें आयें तो जुर्रत और बढती है ,
कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढती है ,
मेरी कमजोरियों पर जब कोई तन्कीत करता है ,
वोह दुश्मन क्यों न हो , उस से मोहब्बत और बढती है ,
अगर बिकने पर आ जाओ तो घट जाते हैं दाम अक्सर ,
न बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढती है ।

This is one of my most favourite Sher by Nawaz Deobandi. Its highly inspiring, motivating and thought provoking...It has got a message for the life , if read and understood deeply..I was over the moon when i read it for the first time.

Sunday, April 18, 2010

वो रुलाकर ...


वो रुलाकर हंस न पाया देर तक

जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक ,


भूलना चाहा अगर उस को कभी

और भी वो याद आया देर तक ,


भूखे बच्चों की तस्सल्ली के लिए

माँ ने फिर पानी पकाया देर तक ,


गुनगुनआता जा रहा था इक फकीर

धूप रहती है ना साया देर तक ।

- Nawaz Deobandi

बदलते वक़्त का ...


बदलते वक़्त का इक सिल _सिला सा लगता है
के जब भी देखो उसे दूसरा -सा लगता है ,


तुम्हारा हुस्न किसी आदमी का हुस्न नहीं
किसी बुज़ुर्ग की सच्ची दुआ सा लगता है ,


तेरी निगाह को तमीज़ रंग -ओ -नूर कहाँ
मुझे तो खून भी रंग-ऐ -हिना सा लगता है ,


दमाग - ओ -दिल हों अगर मुतमईन तो छाओं है धूप ,
थपेड़ा लू का भी ठंडी हवा सा लगता है ।


(मुतमईन - content/ satisfied)

- Manzar Bhopali

Role of AI in Finance: Insights from My Lecture at LBSIM

Artificial Intelligence (AI) is no longer a futuristic concept — it is here, actively shaping how decisions are made, risks are managed, and...